रोज़ कहता हूँ कल से पीयूँगा नहीं,
ग़ालिब की हर सुबह वही, हर शाम वही...
क्या करते ग़ालिब इस बेरुखी दुनिया मे
पि लेते है सही है वही
ग़ालिब की हर सुबह वही, हर शाम वही...
कम से कम नशे मन से जो देखते है वही दिख जाता है
लॊग भी दूर से निकल जाते है
वर्ना आज तो इंसान होश मे खडे खडे बिक जाता है
रोज़ कहता हूँ कल से पीयूँगा नहीं,
ग़ालिब की हर सुबह वही, हर शाम वही...
पि लेते है सही है वही
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