Wednesday 29 May 2013

मेरे शहनवाज़ , तू भी अपना कटोरा पलट के रख दे

मांगने से न दे
फिर कोई समुंदर दे 
मेरे शहनवाज़ , तू भी अपना कटोरा पलट के रख दे 

Monday 27 May 2013

मै गजल बन कर जी रहा हू

मै गजल बन कर जी रहा हू , जिसने चाहा गुनगुना लिया
कुछ ने याद रखा , कुछ ने भुला  दिया
कभी कोठो पर  रहा
तो कभी मयखानों मे,
शराब से नहा लिया
मै गजल बन कर जी रहा हू , जिसने चाहा गुनगुना लिया
अवारा गजल बन गया हू
किसी के भी अचल मे ठहर  गया हू
दूसरो के दर्द को कम करता रहा
मै गजल बन कर
मेरा दर्द कोई न समझ सका
मेरा हम सफ़र बन कर
उसने एक मौका न दिया
दहर छोडने को
हर दम बैठे रहे मेरा , दिल तोडने को
गजल दर दर की ठोकरे खाती रही
जिंदगी के असिया मे रात यो ही आती रही
जब गजल ने दम तोडा
तो वो  घुगरू बांधा कर  मुस्कुराती रही है
आज खामोश गजल कदामत (पुरानी सोच) हो गयी है 
उसका कोई तवारुफ़ (परिचय )नहीं है
हम नासीनो पर एइतिबार  है
कोई तो बढ कर कहेगा
मै उसका मोसीकि (संगीत )रहा हू
मै गजल बन कर जी रहा हू
कोई गजल की भी मिजराब ए आलम (दर्द )को समझे
उसे अपने अरिजो (होटों )पर बसा ले
आज सिर्फ असूओ को पी रहा हु
मै गजल बन कर जी रहा हू ,
मै गजल बन कर जी रहा हू ,......